क्या आय के स्रोतों के खुलासे से राजनीति में आ पाएगी शुचिता ?

चुनाव प्रक्रिया में सुधार एवं राजनीति में शुचिता के लिए उच्चतम न्यायालय ने पिछले दिनों एक ऐतिहासिक व अहम फैंसला सुनाया था। न्यायालय ने याचिकाकर्ता की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि सांसद एवं विधायकों की संपत्ति इतनी कैसे बढ़ जाती है ? यह जनता को जानने का अधिकार है। फैंसले के मुताबिक उम्मीदवारों को अब स्वयं, पत्नी और आश्रितों की संपत्ति के साथ आय का स्रोत भी बताना आवश्यक हो जाएगा। फैंसला के तहत अब से नामांकन परची में एक कॉलम होगा जिसमें आश्रितों की कमाई के स्रोतों को भी दर्शाना होगा। अब वे चल – अचल संपत्ति के साथ ही अपने तथा अपने आश्रितों के आय के स्रोतों का भी उल्लेख करेंगे। साथ ही पिछले पांच वर्षों में कुल आय को वर्ष वार दर्शाना भी आवश्यक हो जाएगा। चुनाव आयोग को यह जानकारी देनी होगी कि उन्हें या उनके आश्रितों के किसी सदस्य की कंपनी को कोई सरकारी टेंडर मिला है या नहीं। यह व्यवस्था अब लोकसभा, राज्य सभा एवं अगले बिहार विधानसभा के साथ पंचायत के चुनाव में भी लागू होगा।

2014 के लोक सभा चुनाव में एडीआर द्वारा उम्मीदवारों के हलफनामों के विश्लेषण के अध्ययन से यह ज्ञात हुआ कि 113 सांसदों की संपत्ति में सौ गुणा, 26 सांसदों की संपत्ति में पांच सौ गुणा वृद्धि हुई है। इनमें 113 सांसदों ने अपना पेशा बतौर समाज सेवा, राजनीति एवं सामाजिक कार्य बताया था। आश्रितों में आठ की पत्नियां गृहिणी थी, लेकिन उनकी संपत्ति करोड़ों में थी। जाहिर है ये सभी आय के स्रोत नहीं हो सकते है। बिहार इलेक्शन वॉच के अध्ययन का भी हवाला दिया जा सकता है कि पिछले विधानसभा में निर्वाचित विधायकों की संपत्ति से उनके आश्रितों की संपत्ति पचास प्रतिशत से अधिक थी। 2015 के विधानसभा में यह भी देखने को मिला कि 43 विधानसभा सदस्यों की पत्नियों की संपत्ति में पचास प्रतिशत से अधिक की वृद्धि देखी गयी। एक विधायक की संपत्ति दो लाख थी वही उनके आश्रित एक करोड़ के स्वामी थे। यानी आश्रितों की संपत्ति में 97.87 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई। इस क्रम में 43 ऐसे माननीय है जिनकी संपत्ति अपने आश्रितों से भी कम है यानी समाज सेवा के नाम पर राजनीति कर रहे विधानसभा सदस्यों को अपने आश्रितों पर ही निर्भर रहना पड़ता है। याचिका कर्ता का यह कहना है कि अब जनता को अपने प्रतिनिधियों को पकड़ना आसान हो जाएगा कि उनकी संपत्ति पिछले कुछ सालों में कितनी बढ़ गई है और उसके आय के जायज स्रोत क्या है ? मतदाताओं को यह जानने का अधिकार है कि आखिर इनकी संपत्ति दिन – दूनी रात चौगुनी कैसे बढ़ रही है। अदालत के आदेश के तहत उम्मीदवारों को न सिर्फ अपनी आय के स्रोत बताने होंगे बल्कि अपनी पत्नी, बेटा, बहु, बेटी दामाद की आय के साथ उनके स्रोत की भी घोषणा करनी होगी।  सर्वविदित है कि बेहिसाब संपत्ति की घोषणा करने के साथ ही यह गोपनीय रहा करता था कि उनकी बेहिसाब संपत्ति का आखिर स्रोत क्या है ? गौर करने वाली बात है कि कमोबेश चुनावों में सभी उम्मीदवारों के द्वारा समाज सेवा या राजनीति को बतौर पेशा बताया जाता है। आखिर राजनीति या समाज सेवा कोई पेशा नहीं होता तो फिर उनकी अकूत संपत्ति का राज आमलोगों को समझ में नहीं आ पाता है ? किसी भी सांसद या विधायक के आय से अधिक संपत्ति माफिया राज को रास्ता माना जाता है। जिसका असर राजनेताओं के भ्रष्टाचार पर पड़ता है।

ऐसा देखा जा रहा है कि अपने परिजनों के नाम पर ऐसे राजनेता कई पीढ़ियों के लिए बेहिसाब संपत्ति बना लेते है वही दूसरी ओर गरीब जनता की सेहत में सालों कोई परिवर्तन नहीं आ पाता। इन माननीयों की संपत्ति और आय के अंर्तसंबन्धों को समझने के लिए 2015 बिहार विधानसभा चुनाव में 160 ऐसे उम्मीदवारों की आय का विश्लेषण किया गया जिनकी 2010 में संपत्ति 84.41 लाख थी, लेकिन 2015 में उनकी संपत्ति में औसतन 199 प्रतिशत वृद्धि देखी गयी यानि औसतन 2.57 लाख। इन पांच सालों में 1.71 करोड़ वृद्धि हुई। इनमें पांच ऐसे नाम है जिनकी संपत्ति 553 प्रतिशत, 480 प्रतिशत, 354 प्रतिशत, 279 प्रतिशत और 210 प्रतिशत तक वृद्धि देखी गयी। विधानसभा के साथ लोकसभा, राज्य सभा एवं प्रदेश के सर्वोच्च पदों पर आसीन राजनेताओं की स्थिति कमोबेश समान ही देखी गयी है।

 

मूल रूप से प्रभात खबर में प्रकाशित!